chhutpankikavitayein

www.hamarivani.com

शुक्रवार, 6 मई 2011

गिन गिनती

यह कविता स्वर्णकांता की ओर से. स्वर्णकांता युवा पत्रकार हैं. दिल्ली में रहती हैं. गिनती पर कविताएं बहुत सृजनातमक है,. कविताई भी और गिनती की याद भी. आप भी अपनी यादों और अपने आसपास पर नज़र डालें और बच्चों के उपयोग की कविताएं हमें भेज डालें gonujha.jha@gmail.com पर.

एक दो- कभी ना रो


तीन-चार- रखना प्यार

पांच-छह- मिलकर रह

सात-आठ- पढ लो पाठ

नौ-दस- जोर से हंस
####






रविवार, 1 मई 2011

मन के भोले भाले बादल

यह कविता शिवम की ज़बान से. अब शिवम 4थी कक्षा का छात्र है, बेहद शरारती, बेहद चंचल और बेहद बातूनी. आप उससे बात करते रह जायें, आप शायद थक जाएं, वह नही हार माननेवाला. सुनिए उसकी ज़बान से यह कविता. आप पढें मगर समझें कि सुन रहे हैं. अब आप भी अपनी याद को जरा टटोलिए और अपनी कविता हमें भेजें इस ब्लॉग के लिए- gonujha.jha@gmail.com पर. 


झब्बर झब्बर बालोंवाले, 
गुब्बारे से गालोंवाले
लगे दौडने आसमान में
झूम झूम कर काले बादल


कुछ जोकर से तोन्द फुलाए
कुछ हाथी से सूंड उठाए
कुछ ऊंटों से कूबडवाले
कुछ परियों से पंख लगाए


आपस में टकराते रह- रहे 
शेरों से मतवाले बादल,


कुछ तो लगते हैं तूफानी 
कुछ रह रह करते शैतानी
कुछ अपने थैलों से चुपके
झर झर झर बरसाते पानी 


कभी कभी छत पर आ जाते,
फिर चुपके ऊपर उड जाते 
बाढ नदी नालों में लाते 
फिर भी लगते बहुत भले हैं  
मन के भोले भाले बादल 
(कल्पनाथ सिंह) 





रविवार, 23 जनवरी 2011

जल्‍दी आओ मेरी लल्‍ली

तोषी आजकल दिल्ली में है. दिल्ली की चर्चा उसने फेसबुक पर की-
"दिल्ली- इस मंगल शुरु, उस मंगल खत्म
दिल्ली- तेरी ठंढ में ठिठुरेंगे नाक, कान और हम."
कमेंट्स मिलने लगे. उन्हीं में एक है, ऋषिकेश सुलभ जी का.

ऋषिकेश सुलभ हिंदी साहित्य और रंगमंच का एक अकेला ऐसा नाम है, जिनके साथ बैठकर आप घंटो बतिया सकते हैं, एकदम सहज और सरल भाव से. नाम के अनुसार ही  ऋषिकेश और सबके लिए सुलभ . पलक झपकते अपनी बात कविता में गढ दी. उसे यहां प्रस्तुत कर रही हूं. आप भी अपनी कवितायें यादों के झरोखे से निकाल कर लाएं और यहां बांटें. मेल करें ,gonujha.jha@gmail.com> पर . 

दि‍ल्‍ली-दि‍ल्‍ली बेहि‍स दि‍ल्‍ली....  
दि‍ल्‍ली हो गई बर्फ़ की सि‍ल्‍ली...
कैसे खेलें डंडा-गि‍ल्‍ली.....
मुम्‍बई है नज़र की झि‍ल्‍ली.....
पलक झपकते नोचे बि‍ल्‍ली.......
द्वार-द्वार पर लगी है कि‍ल्‍ली
पटना आओ मेरी लल्‍ली
हिंया उड़ी न तुम्‍हरी खि‍ल्‍ली
देखे तुमको बरस हुए
जल्‍दी आओ मेरी लल्‍ली
राज़ की बात बताएं तुमको
ठंडी हो रही चि‍कन-चि‍ल्‍ली
आओ-आओ मेरी लल्‍ली