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गुरुवार, 5 जून 2014

सूरज का घर

इस ब्लॉग का उद्देश्य बालोपयोगी कविताओ को देना है, ताकि स्कूल जानेवाले हर उम्र के बच्चे अपनी ज़रूरत के मुताबिक इसमें से कविताएं ले सकें। लोगों की सहभागिता बढ़ाने के लिए हमने उनकी यादों से कविताएं मांगी। बच्चों से स्कूलों में पढ़ाई जानेवाली कविताएं। आपसे अनुरोध कि अपनी यादों के झरोखों को देखें और जो भी याद हों, वे कविताएं मेरे फेसबुक मेसेज बॉक्स में या gonujha.jha@gmail.com पर भेजें। आपकी दी कविताएं आपके नाम के साथ पोस्ट की जाएंगी।
आज प्रस्तुत है,  मृदुला प्रधान की कविता- "सूरज का घर"। मृदुला प्रधान हिन्दी की कवि हैं। उनकी कविताओं में आम जीवन बोलता है। बच्चों के लिए भी उन्होने कविताएं लिखी हैं। ये कविताएं छोटी कक्षाओं के बच्चों से लेकर 10-12वी कक्षा के बच्चे भी पढ़ सकते हैं। आज की कविता नन्हें बच्चों के लिए।  

सूरज का घर कहाँ
और माँ, चाँद कहाँ सोता है?
तारे क्यों छम-छम करते
बादल कैसे उड़ता है?
सुबह कहाँ से आती है
और रात कहाँ जाती है?
हवा कहाँ बैठी रहती
बारिश कैसे होती है?
कैसे खिलता फूल,
पेड़ कैसे लंबा होता है?
सूरज के गोले में कह दो
कौन धूप भरता है?
इंद्रधनुष कैसे बनता
और छाया कौन बनाता है?
माँ तुम्हीं कहो कि
मेरे उठने से पहले ही
चाँद कहाँ छुप जाता है? ###