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सोमवार, 9 जून 2014

सूरज की....! -मृदुला प्रधान

इस ब्लॉग का उद्देश्य बालोपयोगी कविताएं देना है, ताकि स्कूल जानेवाले हर उम्र के बच्चे अपनी ज़रूरत के मुताबिक इसमें से कविताएं ले सकें। लोगों की सहभागिता बढ़ाने के लिए हमने उनकी यादों से कविताएं मांगी। बच्चों से स्कूलों में पढ़ाई जानेवाली कविताएं। आपसे अनुरोध कि अपनी यादों के झरोखों को देखें और जो भी याद हों, वे कविताएं मेरे फेसबुक मेसेज बॉक्स में या gonujha.jha@gmail.com पर भेजें। आपकी दी कविताएं आपके नाम के साथ पोस्ट की जाएंगी।
इस बार की सीरीज में प्रस्तुत की जाएंगी, मृदुला प्रधान की कविताएं! पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा था - "सूरज का घर"। मृदुला प्रधान हिन्दी की कवि हैं। उनकी कविताओं में आम जीवन बोलता है। ये कविताएं छोटी कक्षाओं के बच्चों से लेकर 10-12वी कक्षा के बच्चे भी पढ़ सकते हैं। आज पढ़िये इनकी कविता नन्हें बच्चों के लिए।

सूरज की पहली किरणों पर
आज नया कोई गीत लिखें,
आज रश्मियों के कण-कण से
नया कोई संगीत लिखें।
चलो, वसंती किलकारी सुन
मन अपना अभिसिक्त करें,
खग, नभ की बातें कर के
मन अपना प्रदीप्त करें।
हर कोई अपने में है
हम भी अपने में खो जाएँ।
सुनो, रात होनेवाली है,

आओ, हम-तुम सो जाएँ। ###