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गुरुवार, 18 अक्टूबर 2007

कोयल और कव्वा

छुटपन मी मा के गले लगकर, उनकी पीठ पर झूल झूल कर यह कविता गाती थी। छोटी सी, पर मनभावन

कोयल काली होती है
कव्वा काला होता है
कोयल करती कू -कू
कव्वा करता कांव -कांव
आओ -आओ कोयल रानी
कव्वा भाई जा -जा
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