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गुरुवार, 24 जुलाई 2008

कोठे ऊपर कोठारी

रिश्तों की तरल नोंक झोंक वाला एक और गीत आपके लिए प्रस्तुत है। कहने की ज़रूरत नहीं की इस गीत को भी बच्चे बड़े मजेदार तरीके से प्रस्तुत करते हैं और अपनी मासूम प्रस्तुति से वे एक नया ही गुदगुदाता माहौल तैयार करते हैं।

कोठे ऊपर कोठरी, मैं उस पर रेल चलाय दूँगी।
जो मेरा ससुरा प्यार करेगा
उसको खाना खिलाय दूँगी,
जो मेरा ससुरा करे लड़ाई, भीख माँगने भिजवाय दूँगी।
कोठे ऊपर कोठरी, मैं उस पर रेल चलाय दूँगी।
जो मेरी सासू प्यार करेगी,
उसके पाँव दबाय दूँगी,
जो मेरी सासू करे लड़ाई, रोटी को तरसाय दूँगी।
कोठे ऊपर कोठरी, मैं उस पर रेल चलाय दूँगी।
जो मेरी गोतनी (जिठानी/देवरानी) प्यार करेगी,
उसका खाना पकाय दूँगी,
जो मेरी गोतनी करे लड़ाई, चूल्हा अलग कराय दूँगी।
कोठे ऊपर कोठरी, मैं उस पर रेल चलाय दूँगी।
जो मेरा देवरा प्यार करेगा, उसको डोक्टर बनाय दूँगी
उसको इंजीनियर बनाय दूँगी,
जो मेरा देवरा करे लड़ाई, मूंगफली बिकवाय दूँगी।
कोठे ऊपर कोठरी, मैं उस पर रेल चलाय दूँगी।
जो मेरी ननदी प्यार करेगी,
उसका ब्याह रचाय दूँगी,
जो मेरी ननदी करे लड़ाई,
कॉलेज बंद कराय दूँगी ।
कोठे ऊपर कोठरी, मैं उस पर रेल चलाय दूँगी।

बुधवार, 23 जुलाई 2008

मैं अन्ग्रेज़ी पढी -लिखी

फ़िर से एक गीत, बच्चों के लिए, उनके गाने-नाचने के लिए। रिश्तों की नोक झोंक बच्चों के मुख से और भी ज़्यादा प्रीतकर लगने लगती है, देखें एपी भी-

मैं अन्ग्रेज़ी पढी -लिखी, मेरी किस्मत फूट गई मम्मी जी
जब मैं जाऊं, पेपर पड़ने
ससुरा मेरा आ जाए जी,
पेपर-वेपर छोडो बहू, चाय ज़रा बना लो जी
मैं अन्ग्रेज़ी पढी -लिखी, मेरी किस्मत फूट गई मम्मी जी
जब मैं जाऊं मेक अप कराने, सासू मेरी आ जाए जी,
मेक अप, वेक अप छोडो बहू, खाना ज़रा बना लो जी
मैं अन्ग्रेज़ी पढी -लिखी, मेरी किस्मत फ़ुट गई मम्मी जी
जब मैं जाऊं टी वी देखने, ननदी मेरी आ जाए जी,
टी वी ,वी वी छोडो भाभी, साडी जरा पहना दो जी,
मैं अन्ग्रेज़ी पढी -लिखी, मेरी किस्मत फ़ुट गई मम्मी जी
जब मैं जाऊं पिक्चर देखने, देवर मेरा आ जाए जी,
पिक्चर-विक्चर छोडू भाभी, भजिये ज़रा बना दो जी।
मैं अन्ग्रेज़ी पढी -लिखी, मेरी किस्मत फ़ुट गई मम्मी जी ।

मेरी मुर्गी खो गई है ना

यह गीत भी हम सब बच्चों के थिएटर वर्कशौप में गाते हैं। बच्चे बड़े मजे ले कर इसे गाते हैं और इस पर नाचते हैं। आपका मन करे तो रुकियेगा मत। लोक गीत का रस और रिश्ते की चुहल का मज़ा आप भी लें।

मेरी मुर्गी खो गई है ना
मेरा दिल ठिकाने nahi ना
ससुर आया बोला बहू क्या बनाया खाना
तुम चुपचाप अखबार पढो ना,
मेरा दिल ठिकाने है ना
सासू आई बोली बहू, क्या बनाया खाना,
तुम चुप चाप मन्दिर जाओ ना,
मेरा दिल ठिकाने है ना
ननद आई, बोली भाभी क्या बनाया खाना,
तुम अपनी ससुराल जाओ ना,
मेरा दिल ठिकाने है ना
देवर आया, बोला, भाभी, क्या बनाया खाना
तुम अपनी दुल्हन लाओ ना,
मेरा दिल ठिकाने है ना
पति आया बोला रानी क्या बनया खाना
श ..श..श..श॥
छींके पर मुर्गी है ना
तुम चुप चाप ले के खाओ ना
ससुर से कुछ कहियो ना
तुम चुप चाप मुर्गी खाओ ना
सासू से कुछ कहियो ना
मेरा दिल ठिकाने है ना
देवर से कुछ कहियो ना
मुर्गी तुम ले कर खाओ ना
ननदी से जा कहियो ना
तुम चुप चाप मुर्गी खाओ ना।

मेरी मुर्गी खो गई है ना

मेरा दिल ठिकाने हैना

मंगलवार, 22 जुलाई 2008

रेल में छानानना छानानना होए रे।

यह गीत हम सब बच्चों के थिएटर वर्कशौप में सिखाते हैं। बच्चे बड़े मजे ले कर इसे गाते हैं और इस पर नाचते हैं। आपका मन करे तो रुकियेगा मत।

रेल में छानानना छानानना होए रे।
रेल में बैठे दो मारवाडी
रेल में अट्ठे -कट्ठे अट्ठे- कट्ठे होए रे।
रेल में छानानना छानानना होए रे।
रेल में बैठे दो मद्रासी
रेल में इडली- साम्भर, वडा साम्भर होए रे
रेल में छानानना छानानना होए रे।
रेल में बैठे दो पंजाबी
रेल में बल्ले-बल्ले, बल्ले-बल्ले होए रे
रेल में छानानना छानानना होए रे।
रेल में बैठे दो गुजराती
रेल में खमण ढोकला, खमण खाखडा होए रे
रेल में छानानना छानानना होए रे।
रेल में बैठे दो बिहारी
रेल में पूरी भुजिया, लड्डू-पेरा होए रे
रेल में छानानना छानानना होए रे।
रेल में बैठे दो छोटे बच्चे
रल में हल्ला -गुल्ला, हल्ला-गुला होए रे।
रेल में छानानना छानानना होए रे।

सोमवार, 14 जुलाई 2008

हो चाँद मामा, चाँद मामा हंसुआ द'

यह समय -सापेक्ष नृत्य -गीत हम सबका बड़ा मनभावन था। इस गीत की खासियत है कि आप इसमें अपने समय, काल व् मांग के अनुसार लाइनें जोड़ सकते हैं। भारत - चीन, भारत -पाकिस्तान युद्ध के समय इसमें लाइनें जोड़ कर खूब-खूब जाता था यह गीत। अभी भी अपनी मांग के अनुसार इसमें जोड़ा जा सकता है।
हो चाँद मामा, चाँद मामा हंसुआ द' ।
सेहो हंसुआ काहे ला?
खडिया कटावे ला
सेहो खडिया काहे ला?
गैयन के खियावे ला।
हो गैयन के खियावे ला खडिया द'
हो चाँद मामा, चाँद मामा हंसुआ द' ।
सेहो गैयन काहे ला?
दूधवा दियावे ला,
सेहो दुधवा काहे ला?
लइकन के पियाबे ला
हो, लइकन के पियाबे ला दूधवा द'
हो चाँद मामा, चाँद मामा हंसुआ द' ।
सेहो लइकन काहे ला?
पाठशाला पढावे ला
सेहो पाठशाला काहे ला?
नागारिकन बनावे ला।
हो नागारिकन बनावे ला पाठशाला द'
हो चाँद मामा, चाँद मामा हंसुआ द' ।
सेहो नागरिक काहे ला?
गेंहुआ बोआबे ला,
सेहो गेंहुआ काहे ला?
सेना के खियाबे ला।
हो सेना के खियाबे ला गेंहुआ द'
हो चाँद मामा, चाँद मामा हंसुआ द' ।
सेहो सेना काहे ला?
देसवन के बचाव ला।
सेहो देसवन काहे ला?
आजादी से रहे ला
हो आजादी से रहे ला देसवन द'
हो चाँद मामा, चाँद मामा हंसुआ द' ।

शनिवार, 12 जुलाई 2008

राधा का मनुहार

कल आपने राधा का ज़ोर और कृष्ण का मनुहार पढा। आज राधा का मनुहार। प्रेम में कोई बड़ा छोटा नहीं होता। प्रेम के ये छोटे-छोटे तत्व जीवन में बड़ा रस घोलते हैं। प्रेम के इस मर्म को जो समझ लेता है, उसके जीवन में सदा अमृत रस बना रहता है। राधा का यह केवल मनुहार ही नहीं, बल्कि अपनी वास्तविकता से कृष्ण कोसाक्षात्कार भी कराना है।

मोरे सर पर गागर भारी
उतार दो गिरिधारी
तुम तो पहने पियर पीताम्बर
मैं पंचरंगिनी साड़ी
उतार दो गिरिधारी
तुम तो बेटे नन्द बाबा के
मैं वृषभानु दुलारी
उतार दो गिरिधारी
तुम तो खाओ माखन मिश्री
मैं दधि बेचनवाली
उतार दो गिरिधारी
मोरे सर पर गागर भारी
उतार दो गिरिधारी।

गुरुवार, 10 जुलाई 2008

सुनो राधे रानी

राधा कृष्ण की छेड़छाड़ गीतों में खूब मुखरित हुई है। बचपन में हम यह गीत गाते थे- नृत्य के साथ इसका माधुर्य और भी बढ़ जाता था। राधा का जोर यहाँ बहुत स्पष्ट दीखता है, और संग- सगं कृष्ण का मनुहार भी।
सुनो राधे रानी दे डालो बाँसुरी मोरी
सुनो जी श्याम ना जानूं बाँसुरी तोरी।
कैसे मैं गाऊँ, राधे, कैसे बजाऊँ,
कैसे बुलाऊँ राधे गैयाँ टोली
मुख से बजाओ कान्हा, मुख से तू गाओ,
हथावन बुलाओ कान्हा, गायन टोली।
सुनो राधे रानी दे डालो बाँसुरी मोरी
सुनो जी श्याम ना जानूं बाँसुरी तोरी।

बुधवार, 9 जुलाई 2008

एक और किसान गीत

बचपन में इस किसान गीत को हम सब नृत्य के साथ गाते थे। आज भी इसका माधुरी बरकरार है-
आम मजरायल, बूंट गजरायल
चहके ला सरसों के फूल हो, चहके ला सरसों के फूल हो,
हँसी हँसी बोले पिया हरबहवा
चल' धनी खेतवा के ओर हो,
चहके ला सरसों के फूल हो।
कनखी से देखे ला छोटका देबरवा
मारले कनवां पे फूल हो,
चहके ला सरसों के फूल हो।
रोही-रोही बोलेले गोदी बलकवा
दिन भर ना मिलेले दूध हो,
चहके ला सरसों के फूल हो,

रविवार, 6 जुलाई 2008

एक किसान गीत

फसल और किसानी से सम्बंधित गीत है यह। इसे हम अपने स्कूल के सांस्कृतिक कार्यक्रम में नृत्य के साथ गाते थे। खेत, खलिहान का एक पूरा दृश्य उभर आता है। आज भी इसे मैं बच्चों के थिएटर वर्कशौप में इसे शामिल करती हूँ। एक ग्रामीण आभा से माहौल भर उठता है।
उठ भौजो भोर भेलई, काटे लागी धान हे,
सतुआ, पियाज भौजो, गठरी में बाँध हे।
नैहरा से आईल भौजो छूटलो न चाल हे,
कांडा chhandaa khol' भौजो, घूघता उघार' हे।
hansuaa dudhaar भौजो, dandavaa mein khos' हे।
jaladi se chal' भौजो khetavaa ke or हे ।
गोदवा के लईका भौजो, पीठिया पे बाँध' हे,
झटपट धान रोप', पनिया पियाब' हे।

गुरुवार, 3 जुलाई 2008

और एक प्रार्थना

स्वप्निल यह कविता स्कूलजाने से पहले जोर-जोर से बोलता था। उसकी नानी कहती हैं कि वह यह कविता वह अपनी डेढ़ साल की उम्र में ही बोलने लगा था। यह एक प्रार्थना है। स्वप्निल की शादी ११ जुलाई को हो रही है। उसे बधाई देते हुए उसी की बोली यह प्रार्थना-

हे भगवान, हे भगवान

हम सब बालक हैं नादाँ

बुरी बात से हमें बचाना

खूब पढाना, खूब लिखाना

हमें सहारा देते रहना

ख़बर हमारी लेते रहना

चरणों में हम पड़े हुए हैं

हाथ जोरकर खड़े हुए हैं

विद्या बुद्धि कुछ नहीं पास

हमें बना लो अपना दास।

लो हम शीश झुकाते हैं

विद्या पढ़ने जाते हैं।