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शुक्रवार, 6 मई 2011

गिन गिनती

यह कविता स्वर्णकांता की ओर से. स्वर्णकांता युवा पत्रकार हैं. दिल्ली में रहती हैं. गिनती पर कविताएं बहुत सृजनातमक है,. कविताई भी और गिनती की याद भी. आप भी अपनी यादों और अपने आसपास पर नज़र डालें और बच्चों के उपयोग की कविताएं हमें भेज डालें gonujha.jha@gmail.com पर.

एक दो- कभी ना रो


तीन-चार- रखना प्यार

पांच-छह- मिलकर रह

सात-आठ- पढ लो पाठ

नौ-दस- जोर से हंस
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