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शुक्रवार, 2 नवंबर 2007

लाला जी और केला


लाला जी ने केला खाया
केला खा के मुँह बिचाकाया
मुँह बिचका कर छडी घुमाई
छडी घुमा कर कदम बढाया
कदम के नीचे छिलका आया
लाला जी गिरे धडाम!
मुँह से निकला -'हाय राम, हाय राम!'


3 टिप्‍पणियां:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

राम...राम कह टिप्पणी लिख मारी
कविता बहुत-बहुत है प्यारी।

सुनीता शानू ने कहा…

आपने एक लाईन छोड़ दी है...:)

मुँह बिचकाकर छड़ी घुमाई
छड़ी घुमा कर कदम बढ़ाया

वैसे कविता तो पहले वाली मस्त होती थी...आज भी याद है...:)

Vibha Rani ने कहा…

सुधार दी पंक्ति. बहुत बहुत धन्यवाद. आप भी ऎसा कुच्ह याद हो तो भेजें.