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सोमवार, 12 मई 2008

दिन में रात

अम्मी देखो तारे कैसे, चिडिया बनाकर आए हैं,
सूरज काकू संग में अपने, पित्ज़ा लेके आए हैं।
आसमान का रंग हरा है, धरती लगती नीली है,
कव्वे कितने सुफेद लग रहे, धरती कितनी नीली है।
मैं तो चित्र बनाउऊँ ऐसे, मुझको दिखाते ऐसे सारे,
टीचर को तुम बोलो मम्मी, मार्क्स न मेरे काटे प्यारे
चन्दा मामा दिन में निकले, सूरज काकू रात में,
बिजली कितनी बचेगी मम्मी, है ना दम इस बात में।
राज़ की बात बताऊँ मम्मी, बचेंगे हम स्कूल से,
होंगे दिन में चन्दा तारे, दिन जाता स्कूल में
ज़ल्दी से उठाना न पडेगा, ब्रश-दूध पे डाँट न पड़ेगी,
टीचर भी तो सोये रहेंगे, कोई भी चिंता न रहेगी।
कित्ती अच्छी पेंटिंग मेरी, अम्मी तुम्हारे लिए है ये,
पापा को भी समझाओ, अभी न दिन है, रात है ये।

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