chhutpankikavitayein

www.hamarivani.com

रविवार, 29 जून 2008

एक खेल-कविता- तैरते हुए

एक कविता यह भी। ज़रा खेल के मूड में आइये और मजे लीजिए। यह खेल पानी में खेला जाता था। तब हम छोटे थे। घर के पीछे के तालाब में नहाना उअर तैरना हम सभी भाई- बहनों का शगल था, जूनून की हद तक। इस खेल को पानी में तैरते हुए ही खेला जाता था। प्रश्नोत्तरी अंदाज़ में-

तनी खुद्दी देबे? (ज़रा टूटे चावल दोगी?)

कथी ला? (किसलिए?)

परबा ला (कबूतर के लिए)

तोहर परबा मरि गेलौ (तुम्हारा कबूतर तो मर गया)

के कहलकौ? (किसने कहा?)

धोबिया (धोबी ने)

छाती पीटि के मरि जाऊ? (छाती पीट कर मर जाऊं?)

मर जो (मर जाओ)

और इसके बाद उत्तरदाता कस कर अपने सीने पर दो हत्तर लगाते हुए पीठ के बल तैरते हुए दूर-दूर तक निकल जाता। इस तैरने में वह अपने सारे अंग निश्चेष्ट रखता, जैसे कोई लाश बही जा रही हो। यह इतना मजेदार खेल होता की बस।

1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

अच्छा लगा इस खेल को जानना. :)