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सोमवार, 10 नवंबर 2008

जिनके बिगड़ल बा चलनियां तोड़ दे टंगडी

टहलने के फायदे को ध्यान में रखकर यह गीत लिखा गया था बच्चों के लिए। आप भी अपने बच्चों को इसे सिखा सकते हैं। और हाँ, अपने बचपन की सुनी कवितायें आप हमें ज़रूर भेजें- gonujha.jha@gmail.com पर।
कैसे संभले जिंदगानी, पूछे नगरी,
पूछे नगरी, हो रामा पूछे नगरी,
जिनके बिगड़ल बा चलनियां तोड़ दे टंगडी
हो मारो झाडू आ बधानियाँ, तोड़ दे टंगडी।
घुटने, कमर लेके बैठे क्यों हो मेरे भाई
चलना सीखो मील-मील भर, मत खाओ मिठाई
वरना, जिंदगी बन जायेगी, तुम्हारी गठडी
हो तुम्हारी गठडी हो तुम्हारी गठडी
जिनके बिगड़ल बा चलनियां तोड़ दे टंगडी ।
जल ही जीवन, जीवन -धारा, धारा चलती रहती
समय भी चलता, दिन भी चलते, रात भी चलती रहती
तुम भी चल दो उठ के वरना कम जायेगी शक्ति
हो कम जायेगी शक्ति, हो कम जायेगी शक्ति
जिनके बिगड़ल बा चलनियां तोड़ दे टंगडी ।
शुद्ध साफ़ औक्सीजन भर लो साँस के इंजन में,
कर दो भस्म, घूम के, कोलेस्ट्रौल सीने में
फूलों जैसी हो जायेगी, जीवन की पगडी
हो जीवन की पगडी हो जीवन की पगडी
ऐसे संभले जिंदगानी सुनो री नगरी।

1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

बढ़िया काव्यत्मक सीख.