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शुक्रवार, 9 नवंबर 2007

मज़ा आ गया खेल में


मज़ा आ गया खेल में
भालू बैठा रेल में
हँस कर बोला अच्छा टाटा
मैं कर आऊँ सैर सपाटा
- स्वप्निल

शुक्रवार, 2 नवंबर 2007

लाला जी और केला


लाला जी ने केला खाया
केला खा के मुँह बिचाकाया
मुँह बिचका कर छडी घुमाई
छडी घुमा कर कदम बढाया
कदम के नीचे छिलका आया
लाला जी गिरे धडाम!
मुँह से निकला -'हाय राम, हाय राम!'


सोमवार, 29 अक्टूबर 2007

हाथी की शान


हाथी आया झूम के
धरती माँ को चूम के
टाँगें उसकी मोटी मोटी
आंखें उसकी छोटी- छोटी
सूंड हिलाता आता है
गन्ने पत्ते खाता है
पंखे जैसे उसके कान
देखो बच्चों उसकी शान।

मंगलवार, 23 अक्टूबर 2007

कव्वा और लोमडी


एक कव्वा पेड़ की दाल पे बैठा हुआ था
रोटी का एक टुकडा मुंह में दबा हुआ था
लोमडी बोली, कव्वे भाई, क्या ये गज़ब है
रूप तेरा काला- काला, दाग नहीं है
मोर से भी बढकर राजा तेरी शान है
सूरज से भी ऊंची तेरी आन-बाण है
हो के कुप्पा कव्वा बोला, कांव-कांव-कांव
लपकी रोटी लोमडी ने, चला के अपना दांव
मुंह बनाए बैठा रहा कव्वा पेड़ पर
झूठी बडाई से दूर रहेगा सारी उम्र भर
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सोमवार, 22 अक्टूबर 2007

शेर की ससुराल यात्रा


नाई की दुकान पे जा कर
बोला राजा शेर
बढिया शेव बनाओ भाई
करो न ज़्यादा देर
मालिश कर के क्रीम लगाओ
चिकने कर दो गाल
बीबी को लाने कल मुझको
जाना है ससुराल #

रविवार, 21 अक्टूबर 2007

चिडिया और बन्दर





बैठा था एक दाल पर बन्दर
भीग रहा पानी के अन्दर
थर थर, थर थर काँप रहा था
कहाँ छिपू, यह झाँक रहा था
चिडिया बोली, बन्दर मामा,
कहा नही तुमने क्यो माना
बना नही घर, भीग रहे हो,
आक छी, आक छी, छींक रहे हो।
सुन मामा को गुस्सा आया
चिडिया का घर तोड़ गिराया
चू- चू, चू- चू चिडिया रोई
बैठ दाल पर फिर वो सोई



गुरुवार, 18 अक्टूबर 2007

कोयल और कव्वा

छुटपन मी मा के गले लगकर, उनकी पीठ पर झूल झूल कर यह कविता गाती थी। छोटी सी, पर मनभावन

कोयल काली होती है
कव्वा काला होता है
कोयल करती कू -कू
कव्वा करता कांव -कांव
आओ -आओ कोयल रानी
कव्वा भाई जा -जा
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