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मंगलवार, 11 मार्च 2008

ताड़ काटो..

बचपन में हम सब इस कविता को पढ़ते हुए बहुत खेलते थे। बाकायदा बच्चों की टोली होती। पूरे एक्शन के साथ हम इसे खेलते और गाते, गाते और खेलते। यह एक्शन टू यहाँ नहीं दिखाया जा सकता, पर, कविता ज़रूर पढी जा सकती है-
ताड़ काटो, तरकुन काटो, काटो रे बर्खाजा
हाथी पर के धिमुनी चमक उठे राजा
राजा की रजाई, भैया की दुलाई
ईंट मारू, झींट मारो, मुन्गरी झपट्टा ।

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