chhutpankikavitayein

www.hamarivani.com

बुधवार, 12 मार्च 2008

इरिक मिरिक

यह कविता भी बचपन में हम सब खूब दुहराते थे। कोई मतलब नहीं, कोई अर्थ या भावार्थ नहीं, मगर गज़ब की लयात्मकता है इसमें।
इरिक मिरिक मिर्चैया के पत्ता
हाथी दांत समंदर छत्ता
छत्ते ऊपर तीर कमानी
काबडी खेले बड़ा जुआनी
सांप बोले चुई-चुई
परबा मांगे दाना
चल रे चल तू थाना
गीदड़ तेरा नाना .

1 टिप्पणी:

ghughutibasuti ने कहा…

हाहाहाहा ! हमने भी ऐसे कई गीत गाए हैं ।
घुघूती बासूती