chhutpankikavitayein

www.hamarivani.com

रविवार, 11 मई 2008

बचपन

बचपन के दिन भाए ऐसे, जैसे बाग़-बगीचे
हम झूला, झूले के ऊपर, झूला मेरे नीचे,
अपनी थी कागज़ की नैया, थे तेल्चात्ते, चींटे,
तितली से भी छनती गाधी, कव्वे शहद से मीठे
दादी के हाथों की मालिश, उसके प्यार की गरमी
चुटिया दीदी से ही बनेगी, ऎसी थी हठधर्मी
लिख किताब में 'चोर', सेंधामार', भइया को दिखाया नीचे
अब चुराओ फ़िर पैसे मेरे, जाओगे थाने सीधे
गोबर, मिट्टी, घास- पुआल, होली, होती निराली,
पक उपले पर सोंधी लिट्टी, आलू, चटनी सआरी,
पेड़ पे चढ़ अमरूद तोड़ना, कच्चे आम का कुच्चा
रस्सी, कबड्डी, चोर-सिपाही, आइस-पैस में गच्चा
बचपन में जीवन की बगिया, चन्दा, झूला-डोरी
बचपन मस्ती और कलंदारी, ताबदक चलती घोडी
सुबह शाम तरकारी आती, सुबह-शाम के नखरे,
धरो- सहेजो बचपन आपना जिन्दगी ना छूटे- बिखरे

3 टिप्‍पणियां:

राजीव रंजन प्रसाद ने कहा…

कविता और इसका प्रवाह प्रशंसनीय है।

***राजीव रंजन प्रसाद

Keerti Vaidya ने कहा…

ati sunder...bahaut accha likha hai

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बढ़िया.