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गुरुवार, 29 मई 2008

सैनिक

स्वप्निल ने अपने बचपन में सुनी कविताओं में से कुछ भेजी हैं। यह एक कविता उसने भेजी तो, लेकिन इसकी एक लाइन वह भूल गया है। हम उस लाइन के बिना ही इस कविता को दे रहे हैं, इस विश्वास के साथ कि आप में से कोई इस लाइन को पूरी कर दे।

हम सैनिक हैं, हम सैनिक हैं
लाराने को रण में जायेंगे
कुछ अपने हाथ दिखाएँगे
हम शूरवीर कहलायेंगे

घमासान हम समर करेंगे
नम जगत में अमर करेंगे
हम -सा ना बहादुर कोई है
जो कहते कर दिखालायेंगे
-------------------------- (अपूर्ण pankti)
रिपुओं के छक्के छुडायेंगे
- स्वप्निल