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सोमवार, 2 जून 2008

डॉक्टर से २ कवितायेँ

डॉक्टर पर २ कवितायेँ। १ स्वप्निल ने भेजी तो एक मुझे भी याद आ गई। यह मेरी बेटी कोशी अपने छुटपन में गा-गा कर मुझे सुनाती थी। आप सब भी देखें-

"नीम्बू की प्लेट में
आम का अचार है
बुड्ढा नाराज़ है
बुढ़िया बीमार है
आ जा मेरे डॉक्टर, तेरा इंतज़ार है।"
- स्वप्निल

"आज सोमवार है
गुडिया को बुखार है
गुडिया गई डॉक्टर के पास
डॉक्टर ने मारी सुई
गुडिया रोई- उई, उई, उई।"

3 टिप्‍पणियां:

Rajesh Roshan ने कहा…

डॉक्टर ने मारी सुई
गुडिया रोई- उई, उई, उई।"

हा हा हा हा. मजेदार आप लिखते रहे. पढने में बहुत मजा आ रहा है

Udan Tashtari ने कहा…

स्वपनिल तो बढ़िया कविता याद किए हैं, मजेदार.

रंजू भाटिया ने कहा…

बहुत सुंदर ..उई उई ख़ास कर :)