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सोमवार, 17 अगस्त 2009

अंगूर का अनार

कुछ बच्चियों ने मिलकर बनाया एक ब्लाग- http://paripoems।blogspot.com/ यह कविता वहीं से ली गई है। आप भी अपनी पिटारी खोलें और कवितायें भेजें gonujha.jha@gmail.com पर ।

बात है यह बहुत पुरानी

खा रही थी अंगूर एक रानी

बीज उसके गले में फंसता

यह देख कर भाई उसका बहुत हंसता

जितने भी अंगूर वह पाती

बीज निकाल कर ही खाती

बीज वह बगीचे में बोती

अंगूर होंगे खूब, वह सोचती

बीते कई महीने-साल

अंगूर ना उगा

पर उग गया अनार

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