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सोमवार, 9 नवंबर 2009

बी सैलानी क्या कहती हैं?


इस बार की कविता पाकिस्तान के एक अज़ीम शायर और अदीब अहफाज-उर-रहमान की. हिन्दुस्तान के जबलपुर में पैदा हुए रहमान साहब पाकिस्तान के मशहूर लेखक और शायर के साथ साथ वहां के तेज़ तर्रार पत्रकार भी हैं. उन्होंने एक साथ पाकिस्तान की तानाशाही सत्ता और प्रेस की आज़ादी और मीडिया कामगारों के लिए लडाइयां लडी हैं. अबतक उनकी 18 किताबें शाया हो चुकी हैं. फरवरी 2008 का दिन पाकिस्तानी अदब का एक ऐतिहासिक दिन था, जब रहमान साहब की एक साथ चार किताबें आईं. उनकी यह कविता खास तौर से इस ब्लॉग के लिए महनाज़ साहिबा ने मुहय्या कराई हैं. दोनों का आभार. आप भी अपनी यादों के झरोखे से बचपन की कुछ कविताएं हमें भेजें gonujha.jha@gmail.com पर.

बी सैलानी क्या कहती हैं?

बी सैलानी क्या करती हैं?

सुबह सवेरे उनका नारा

गूंज उठा है घर के अन्दर

जाऊंगी मैं घर के बाहर

म्याऊं म्याऊं से मैं खेलूंगी

दूध से उसको नहलाऊंगी

वो उछलेगी, गुर्राएगी

मैं नाचूंगी, इतराऊंगी

उसकी मोटी दुम खेंचूंगी

मैं झपटूंगी, वो भागेगी

सब कहते हैं दम तो ले लो

पहले अपना मुंह तो धो लो

मुंह धो कर कुछ खाना खा लो

वो कहती है नो नो नो

खाना वाना क्या खाना है

मुझको तो बाहर जाना है.

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