यह कविता भी बचपन में हम सब खूब दुहराते थे। कोई मतलब नहीं, कोई अर्थ या भावार्थ नहीं, मगर गज़ब की लयात्मकता है इसमें।
इरिक मिरिक मिर्चैया के पत्ता
हाथी दांत समंदर छत्ता
छत्ते ऊपर तीर कमानी
काबडी खेले बड़ा जुआनी
सांप बोले चुई-चुई
परबा मांगे दाना
चल रे चल तू थाना
गीदड़ तेरा नाना .