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शुक्रवार, 21 मई 2010

गिनती गिन लो प्यारे भाई!

यह कविता भी प्रतिमा की यादों से. आप भी अपनी यादों के झरोखे से एकाध कवितायें लाइये, ताकि आज के बच्चे उनका स्वाद ले सकें. भेजें- gonujha.jha@gmail.com पर

इस कविता के लिए प्रतिमा कहती हैं- "इस कविता से मेरी नानी की यादें जुड़ी हैं . इस कविता को हमने कहीं पढ़ा नहीं बल्कि उन्हीं के मुँह से सुना था और आज भी याद है. एक से दस तक की गिनती किसी नन्हें बच्चे को सिखाने का कितना प्यारा और आसान तरीका .... है न !"

एक राजा की बेटी थी ,
दो दिन से बीमार पड़ी,
तीन डाक्टर सुन कर आए ,
चार दवा की पुड़िया लाए ,
पांच बार घिस गरम कराई ,
छः-छः घंटे बाद पिलाई ,
सात दिनों में आँखें खोलीं ,
आठ दिनों में हँस कर बोली ,
नौ दिनों में ताकत आई ,
दस वें दिन उठ दौड़ लगाई !