बहुत दिन बाद मुखातिब हूँ। इस ब्लॉग को आरंभ करने का उद्देश्य बालोपयोगी कविताओ को देना है, ताकि स्कूल जानेवाले हर उम्र के बच्चे अपनी ज़रूरत के मुताबिक इसमें से कविताएं ले सकें। लोगोंकी सहभागिता बढ़ाने के लिए हमने उनकी यादों से कविताएं मांगी। बच्चों ने स्कूलों में पढ़ाई जानेवाली कविताएं सुनाईं। फिर यह क्रम थम सा गया, क्योंकि कविताएं मिलनी बंद हो गईं। नेट का जमाना है, इसलिए कहीं से भी कविताएं ली जा सकती हैं। लेकिन, मैं लोगों की परस्पर सहभागिता चाहती रही। ज़रूरी नहीं कि आप लिखें ही। आपने बचपन में कविताएं सुन रखी होंगी। आप उन्हें अपनी यादों के झरोखे से हम तक पहुंचाएँ।
मुझे खुशी है कि इस बार बाल-साहित्य के चितेरे श्री रमेश दिविक जी ने अपनी दो कविताएं यहाँ शेयर करने की इजाजत दी है। यह ब्लॉग और मैं उनके बहुत बहुत आभारी हैं। इन पर आपकी राय अपेक्षित हैं। आपसे यह भी अनुरोध कि अपनी यादों के झरोखों को देखें और जो भी याद हों, वे कविताएं हमें भेजें- मेरे फेसबुक मेसेज बॉक्स में या gonujha.jha@gmail.com पर मेल करें। आपकी दी कविताएं आपके नाम के साथ पोस्ट की जाएंगी।
यहा प्रस्तुत हैं- रमेश दिविक की कविताएं।
आओ बूंदों,
आकर मेरी क्यारी मे हल चलाओ,
बहुत मज़ा आएगा ।
बहुत मज़ा आएगा,
जब छूते हुए फसलों को
निकाल जाएगी हवा
नहीं हॆ न छाता, सड़क!
मुझे खुशी है कि इस बार बाल-साहित्य के चितेरे श्री रमेश दिविक जी ने अपनी दो कविताएं यहाँ शेयर करने की इजाजत दी है। यह ब्लॉग और मैं उनके बहुत बहुत आभारी हैं। इन पर आपकी राय अपेक्षित हैं। आपसे यह भी अनुरोध कि अपनी यादों के झरोखों को देखें और जो भी याद हों, वे कविताएं हमें भेजें- मेरे फेसबुक मेसेज बॉक्स में या gonujha.jha@gmail.com पर मेल करें। आपकी दी कविताएं आपके नाम के साथ पोस्ट की जाएंगी।
यहा प्रस्तुत हैं- रमेश दिविक की कविताएं।
आओ बूंदों,
आकर मेरी क्यारी मे हल चलाओ,
बहुत मज़ा आएगा ।
बहुत मज़ा आएगा,
जब छूते हुए फसलों को
निकाल जाएगी हवा
इधर से उधर।
और फसलें,
बिलकुल हम बच्चों सी
खिलखिलाकर
लोटपोट हो जाएंगी
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छाता
सड़क !
सड़क !
हो जाओ न थोड़ी ऊंची,
बस मेरे नन्हें कद से थोड़ी ऊंची।
मैं आराम से निकाल जाऊंगा
तुम्हारे नीचे-नीचे
घर से स्कूल तक।
न मुझे धूप लगेगी, न बारिश।
हमारे घर में
न मुझे धूप लगेगी, न बारिश।
हमारे घर में
नहीं हॆ न छाता, सड़क!
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