तोषी आजकल दिल्ली में है. दिल्ली की चर्चा उसने फेसबुक पर की-
"दिल्ली- इस मंगल शुरु, उस मंगल खत्म
दिल्ली- तेरी ठंढ में ठिठुरेंगे नाक, कान और हम."
कमेंट्स मिलने लगे. उन्हीं में एक है, ऋषिकेश सुलभ जी का.
"दिल्ली- इस मंगल शुरु, उस मंगल खत्म
दिल्ली- तेरी ठंढ में ठिठुरेंगे नाक, कान और हम."
कमेंट्स मिलने लगे. उन्हीं में एक है, ऋषिकेश सुलभ जी का.
ऋषिकेश सुलभ हिंदी साहित्य और रंगमंच का एक अकेला ऐसा नाम है, जिनके साथ बैठकर आप घंटो बतिया सकते हैं, एकदम सहज और सरल भाव से. नाम के अनुसार ही ऋषिकेश और सबके लिए सुलभ . पलक झपकते अपनी बात कविता में गढ दी. उसे यहां प्रस्तुत कर रही हूं. आप भी अपनी कवितायें यादों के झरोखे से निकाल कर लाएं और यहां बांटें. मेल करें ,gonujha.jha@gmail.com> पर .
दिल्ली-दिल्ली बेहिस दिल्ली....
दिल्ली हो गई बर्फ़ की सिल्ली...
कैसे खेलें डंडा-गिल्ली.....
मुम्बई है नज़र की झिल्ली.....
पलक झपकते नोचे बिल्ली.......
द्वार-द्वार पर लगी है किल्ली
पटना आओ मेरी लल्ली
हिंया उड़ी न तुम्हरी खिल्ली
देखे तुमको बरस हुए
जल्दी आओ मेरी लल्ली
राज़ की बात बताएं तुमको
ठंडी हो रही चिकन-चिल्ली
आओ-आओ मेरी लल्ली
पटना आओ मेरी लल्ली
हिंया उड़ी न तुम्हरी खिल्ली
देखे तुमको बरस हुए
जल्दी आओ मेरी लल्ली
राज़ की बात बताएं तुमको
ठंडी हो रही चिकन-चिल्ली
आओ-आओ मेरी लल्ली