जी हाँ, कौन कहता है, हिंदुत्व वाद आज की देन है या कुछ सिरफिरे विचारकों की अपनी अपनी डफली अपना अपना राग बजाने का बे सिर -पैर का आग्रह। हम जब पैदा हुए, तब आजाद भारत अपनी किशोरावस्था में था। हम सब बचपन में ढेर सारी कवितायें, कहानियां सुनते थे। खेलते हुए इसे गाते रहना और गाते हुए खेलते रहना हम सबकी आदत में शुमार था। तब हमें इन सब चीजों के मायने पता भी नहीं थे। एकाध बार पूछा भी, तो "बच्चे हो, अभी क्या समझोगे" कहकर टाल दिया जाता या डांट कर भगा दिया जाता। हम तब अपनी ही पिनक में सब भूल फ़िर से खेल में मग्न हो जाते। यह कविता तब हम झूम-झूम कर गाते। एक बार गा ही रहे थे कि माँ के स्कूल के चपरासी युसूफ मियां आ गए और हमें बीच में ही इसे गाने से रोक दिया गया। पूछने पर बताया गया, इसके सामने नहीं गाते। क्यों? तो वही जवाब -"बच्चे हो, अभी क्या समझोगे" कहकर हकाल दिया गया।
आज जब समझ पा रही हूँ तो लगता है, बचपन से ही कितनी गहराई से हमारे भीतर नफ़रत के बीज भर दिए जाते रहे हैं! हम हिदू हैं और इसलिए ऊंचे हैं, यह कहना नहीं पङता था, अपने -आप प्रकट कर दिया जाता था। हिंदुत्व वाद का यह आक्रमण, पाकिस्तान और मुसलमानों से घृणा का भाव तब से चला आ रहा है। आज "मि. जिन्ना " नाटक करते समय यह ख्याल आता है कि क्या वाकई जिन्ना ऐसे थे? और अगर वे ऐसे थे तो हमारे तब के लीडारान कैसे थे, जिनके कारण भारत को एक से दो और फ़िर दो से तीन होना पडा। यह कविता उसकी बानगी है-
ABCDEFG
उससे निकले गांधी जी
गांधी जी ने खाया अंडा
उससे निकला तिरंगा झंडा
तिरंगा झंडा उड़े आकाश
उससे निकला जय प्रकाश
जय प्रकाश ने फेंका भाला
उससे निकला जिन्ना साला
जिन्ना साला बड़ा बदमाश
घर-घर मांगे पाकिस्तान
पाकिस्तान में आग लगा दो
मियाँ सबका मुंह झरका दो (जला दो)