छुटपन की कवितायें के लिए मैंने रेखा दी से अनुरोध किया। वे मान गई और अपने बचपन की एक कविता लिख के भेजी है, जिसे आपको पेश कर रही हूँ। आप भी हमे अपने बचपन में सुनी कवितायें भेजें, ताकि हमारी नन्ही पीढी इन्हें दुहरा सकें। कवितायें gonujha.jha@gmail.com पर भेजें।
"यह कविता मैंने बचपन में जब १९६२ में चीन की लडाई चल रही थी तो अपने स्कूल में पढ़ी थी १५ अगस्त को।"
सीमा को जाता है भाई,
बहन बधाई देने आई,
आंसू अपने रोक न पाई,
फिर भी यह कहकर मुस्काई।
देखो भैया वचन निभाना,
पीठ दिखा कर भाग न आना,
देख रहा है तुम्हें जमाना,
मत माता का दूध लजाना।
दुश्मन को तुम जाके भागना,
भारत माँ की लाज बचाना,
सीना चौडा करके आना,
देश के सच्चे सपूत कहाना
- रेखा श्रीवास्तव