फसल और किसानी से सम्बंधित गीत है यह। इसे हम अपने स्कूल के सांस्कृतिक कार्यक्रम में नृत्य के साथ गाते थे। खेत, खलिहान का एक पूरा दृश्य उभर आता है। आज भी इसे मैं बच्चों के थिएटर वर्कशौप में इसे शामिल करती हूँ। एक ग्रामीण आभा से माहौल भर उठता है।
उठ भौजो भोर भेलई, काटे लागी धान हे,
सतुआ, पियाज भौजो, गठरी में बाँध हे।
नैहरा से आईल भौजो छूटलो न चाल हे,
कांडा chhandaa khol' भौजो, घूघता उघार' हे।
hansuaa dudhaar भौजो, dandavaa mein khos' हे।
jaladi se chal' भौजो khetavaa ke or हे ।
गोदवा के लईका भौजो, पीठिया पे बाँध' हे,
झटपट धान रोप', पनिया पियाब' हे।