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गुरुवार, 3 जुलाई 2008

और एक प्रार्थना

स्वप्निल यह कविता स्कूलजाने से पहले जोर-जोर से बोलता था। उसकी नानी कहती हैं कि वह यह कविता वह अपनी डेढ़ साल की उम्र में ही बोलने लगा था। यह एक प्रार्थना है। स्वप्निल की शादी ११ जुलाई को हो रही है। उसे बधाई देते हुए उसी की बोली यह प्रार्थना-

हे भगवान, हे भगवान

हम सब बालक हैं नादाँ

बुरी बात से हमें बचाना

खूब पढाना, खूब लिखाना

हमें सहारा देते रहना

ख़बर हमारी लेते रहना

चरणों में हम पड़े हुए हैं

हाथ जोरकर खड़े हुए हैं

विद्या बुद्धि कुछ नहीं पास

हमें बना लो अपना दास।

लो हम शीश झुकाते हैं

विद्या पढ़ने जाते हैं।