यह कविता भी प्रतिमा की यादों से. आप भी अपनी यादों के झरोखे से एकाध कवितायें लाइये, ताकि आज के बच्चे उनका स्वाद ले सकें. भेजें- gonujha.jha@gmail.com पर
इस कविता के लिए प्रतिमा कहती हैं- "केवल तुक मिलाती इस कविता का अर्थ आज भी नहीं पता, लेकिन इसे बोलकर पढने में बचपन में भी मज़ा आता था, अब भी आता है." पढिये कविता और आप भी जरा तुकबंदे का स्वाद लीजिए:
अटकन - बटकन,
दहिया चटकन,
नानी लाई ,
खीर - मलाई ,
मुसवा मोटा ,
रुपिया खोटा,
माला टूटी ,
किस्मत फूटी ,
गोल बताशे ,
खेल -तमाशे,
खा लो चमचम ,
हरहर बमबम . .