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मंगलवार, 1 जुलाई 2014

सूर्यास्त!

इस ब्लॉग का उद्देश्य बालोपयोगी कविताएं देना है, ताकि स्कूल जानेवाले हर उम्र के बच्चे अपनी ज़रूरत के मुताबिक इसमें से कविताएं ले सकें। लोगों की सहभागिता बढ़ाने के लिए हमने उनकी यादों से कविताएं मांगी। बच्चों से स्कूलों में पढ़ाई जानेवाली कविताएं। आपसे अनुरोध कि अपनी यादों के झरोखों को देखें और जो भी याद हों, वे कविताएं मेरे फेसबुक मेसेज बॉक्स में या gonujha.jha@gmail.com पर भेजें। आपकी दी कविताएं आपके नाम के साथ पोस्ट की जाएंगी।
इस बार की सीरीज में प्रस्तुत की जा रही हैं- मृदुला प्रधान की कविताएं! मृदुला प्रधान हिन्दी की कवि हैं। उनकी कविताओं में आम जीवन बोलता है। ये कविताएं छोटी कक्षाओं के बच्चों से लेकर 10-12वी कक्षा के बच्चे भी पढ़ सकते हैं। आज की कविता, बड़ी क्लास के बच्चों के लिए-  सूर्यास्त!

सूर्यास्त!

रंग की दहलीज पर
उड़ती
गुलालों की फुहारें,
लाल, पीली, जामुनी पनघट,
कनक के हैं किनारे
दूर नभ के छोर पर
घाट स्वर्ण का
पानी सिंदूरी
सात घोड़ों के सजे रथ से
किरण
उतरी सुनहरी।
स्वर्ण-घट में भारी लाली
धूप थाली में सजा ली
क्षितिज का आँचल पकड़कर
एक चक्का लाल- सा 
हौले से नीचे को गया
सूर्यास्त

कहते हैं, हुआ। ###