यह कविता शिवम की ज़बान से. अब शिवम 4थी कक्षा का छात्र है, बेहद शरारती, बेहद चंचल और बेहद बातूनी. आप उससे बात करते रह जायें, आप शायद थक जाएं, वह नही हार माननेवाला. सुनिए उसकी ज़बान से यह कविता. आप पढें मगर समझें कि सुन रहे हैं. अब आप भी अपनी याद को जरा टटोलिए और अपनी कविता हमें भेजें इस ब्लॉग के लिए- gonujha.jha@gmail.com पर.
झब्बर झब्बर बालोंवाले,
गुब्बारे से गालोंवाले
लगे दौडने आसमान में
झूम झूम कर काले बादल
कुछ जोकर से तोन्द फुलाए
कुछ हाथी से सूंड उठाए
कुछ ऊंटों से कूबडवाले
कुछ परियों से पंख लगाए
आपस में टकराते रह- रहे
शेरों से मतवाले बादल,
कुछ तो लगते हैं तूफानी
कुछ रह रह करते शैतानी
कुछ अपने थैलों से चुपके
झर झर झर बरसाते पानी
कभी कभी छत पर आ जाते,
फिर चुपके ऊपर उड जाते
बाढ नदी नालों में लाते
फिर भी लगते बहुत भले हैं
मन के भोले भाले बादल
(कल्पनाथ सिंह)
झब्बर झब्बर बालोंवाले,
गुब्बारे से गालोंवाले
लगे दौडने आसमान में
झूम झूम कर काले बादल
कुछ जोकर से तोन्द फुलाए
कुछ हाथी से सूंड उठाए
कुछ ऊंटों से कूबडवाले
कुछ परियों से पंख लगाए
आपस में टकराते रह- रहे
शेरों से मतवाले बादल,
कुछ तो लगते हैं तूफानी
कुछ रह रह करते शैतानी
कुछ अपने थैलों से चुपके
झर झर झर बरसाते पानी
कभी कभी छत पर आ जाते,
फिर चुपके ऊपर उड जाते
बाढ नदी नालों में लाते
फिर भी लगते बहुत भले हैं
मन के भोले भाले बादल
(कल्पनाथ सिंह)