यह कविता भी हमें रेखा दी के सौजन्य से मिली है। हालांकि यह बहुत पुरानी कविता है और लगभग सभी को पाता है, फ़िर भी इसे यहाँ देने का अपना लुत्फ़ है।
चंदा मामा दूर के,
पुए पकाए गुड के ,
आप खाए थाली में,
मुन्ने को दें प्याली में,
प्याली गयी टूट,
मुन्ना गया रूठ,
हम नयी प्याली लायेंगे,
मुन्ने को मनाएंगे,
बजाकर बजाकर तालियाँ ,
मुन्ने को खिलाएंगे.
2 टिप्पणियां:
आज ही आदि को सुनाता हूँ...
बचपन की याद आ गयी।
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