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रविवार, 14 फ़रवरी 2010

सूरज जल्दी आना जी,

इस बार की कविता शिवम की ज़बान से. शिवम 2री कक्षा का छात्र है, बेहद शरारती, बेहद चंचल और बेहद बातूनी. आप उससे बात करते रह जायें, आप शायद थक जाएं, वह नही हार माननेवाला. सुनिए उसकी ज़बान से यह कविता. आप पढें मगर समझें कि सुन रहे हैं. अब आप भी अपनी याद को जरा टटोलिए और अपनी कविता हमें भेजें इस ब्लॉग के लिए- gonujha.jha@gmail.com पर


एक कटोरी भर कर गोरी 
धूप हमें भी लाना जी,
सूरज जल्दी आना जी,


जम कर बैठा यहां कुहासा,
आर पार न दिखता है,
ऐसे भी क्या कभी किसी के,
घर में कोई टिकता है.
सच सच ज़रा बताना जी,
सूरज ज़ल्दी आना जी.


कल की बारिश में जो भीगे,
कपडे अबतक गीले हैं,
क्या दीवारें, क्या दरवाज़े, 
सबके सभी सीले हैं.
सच सच ज़रा बताना जी,
ना, ना, ना ,ना, ना-ना जी
सूरज जल्दी आना जी,
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