छुटपन की गठरी में तो जाने कैसी -कैसी अल्लम -गल्लम चीजें भरी हैं . गाँठ ढीली पड़ते ही चारों ओर बिखर जातीं हैं . लगता है कि बचपन तो बस कल ही विदा हुआ है , वो भी फिर - फिर लौटने का वादा करके .... ! बचपन में पाठ्य पुस्तक में पड़ी कविताएँ, याद नहीं पड़ता, कि कभी सायास रटी गयीं थी , लेकिन बस यूहीं जाने कब मन की सतह पर ऐसी छपीं कि फिर कभी भूलीं ही नहीं . ये ऐसी ही एक कविता है जो अब भी जबानी याद है . (शायद अपने भी कहीं पढ़ी हो , मेरे कोर्स में थी.)नहीं पता कि ये रचना किस कवि की है मगर उन्हें प्रणाम ज़रूर करना चाहूगीं कि उन्होंने मेरे बचपन को एक ऐसी कविता दी जो आज भी बारिश होते ही मुझे अपने बचपन में उड़ा ले जाती है.
अम्मा ज़रा देख तो ऊपर,
चले आ रहे हैं बादल,
,दीख रहा है जल ही जल ,
हवा चल रही क्या पुरवाई ,
झूम रही डाली -डाली ,
ऊपर काली घटा घिरी है ,
नीचे फैली हरियाली ,
भीग रहे हैं खेत-बाग-वन,
भीग रहा है घर-आँगन ,
बाहर निकालूँ ,मैं भी भीगूँ ,
चाह रहा है मेरा मन !
6 टिप्पणियां:
badi hi sundar aur bholi kavita
उम्मेद जी, आपके ब्लॉग से जुडकर खुशी होगी. लिंक भेजें और हां, इस ब्लॉग के लिए अपनी यादों के झरोखों से एकाध कविता भी.
विदेश में बैठे हुए आज मुझे इस कविता को अपनी बच्चों की हिन्दी का कक्षा में सिखाने का मन था। मैं इस कविता की खोज में कम्प्यूटर बैठी और एक ही क्लिक में यह मुझे मिल गयी। धन्यवाद-धन्यवाद!!
hanks for recalling this Poem.
I also used to recall this wnenever it is raining.
hanks for recalling this Poem.
I also used to recall this wnenever it is raining.
वाह बचपन याद दिला दी आपने। अब तो अम्मा भी नहीं रहीं लेकिन ऐसा लगता है कि आज से लगभग पचपन साल पहले की तरह अम्मा कह रही हों कि ऐ बाबू,हऊ बरसात वाली कविता पढ के सुनाव ना।
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