कुछ जिह्वा नृत्य (tongue twisters) आपके और आपके बच्चों के लिए. खुद भी अभ्यास करें और बच्चों को भी कराएं. बच्चे अपनी क्लास या अन्य कहीं इसकी प्रतियोगिता आदि भी कर सकते हैं. खेल का खेल, मनोरंजन का मनोरंजन और अभ्यास का अभ्यास. आप भी ऐसी अनोखी कविताएं, बातें इस ब्लॉग के लिए भेजें gonujha.jha@gmail.com पर. आपके नाम व संदर्भ के साथ इसे प्रकाशित किया जाएगा. अपनी अगली नस्ल की समृद्धि में अपना योगदान दें.
1 पीठ ऊंची ऊंट की ऊंचाई से नहीं होती, होती ही है, होती ही है, पीठ ऊंची ऊंट की.
2 चंदा चमके चम चम, चीखे चौकन्ना चोर, चीनी चाटे चींटी, चटोरी चीनी चोर.
3 खडग सिंह के खडकने से खडकती हैं खिडकियां, खिडकियों के खडकने से खडकता है खडग सिंह.
4 पके पेड पर पका पपीता, पका पेड या पका पपीता, पके पेड को पिंकू पकडे, पिंकू पकडे पका पपीता
5 चंदू के चाचा ने चंदू की चाची को चांदी के चमचे से चौदहवीं की चांदनी रात में चौथी बार चार चम्मच चटनी चटाई.
6 सुनिए श्रीमती सुषमा शर्मा, इस परिस्थिति में मस्तिष्क के समस्त स्नायु शिथिल व सुप्त हो चले हैं.
7 आप प्रथमत: अपने प्रिय पुत्र को प्रेम की पप्पी प्रेषित कर प्यार से पुचकारिये.
8 कलाम कलम ले कमल को कमाल कराने गया.
9 लडकी लकडी, ककडी कडाह में काट कराहने लगी.
10 राधा की नीबू में बूनी की धारा, धारा में राधा की बूनी बनी धारा
This blog is "Poetry meant for Children" so that children of all age group can pick up their favorite from here. You may also participate. Send poems, written or heard by you on gonujha.jha@gmail.com. poems will be published with your name.
बुधवार, 30 जून 2010
गुरुवार, 3 जून 2010
माँग-माँग कर पैसे लाती !
यह कविता भी प्रतिमा की यादों से. आप भी अपनी यादों के झरोखे से एकाध कवितायें लाइये, ताकि आज के बच्चे उनका स्वाद ले सकें. भेजें- gonujha.jha@gmail.com पर
इस कविता के लिए प्रतिमा कहती हैं- "याद है मुझे , छुटपन में डुगडुगी बजाता , बच्चों को बुलाता वो मदारी जिसके पास हीरो-हीरोइन जैसे दो बन्दर होते थे, मतलब वो ऐसा कहता था. चश्मा लगाये बन्दर और घाघरा पहने बन्दरिया .. आहा कित्ती प्यारी... मदारी की डुगडुगी पर हम बच्चों का घर से निकलना वैसे ही तय होता था , जैसे पैड्पाइपर के पाइप बजाने पर चूहों का निकलना, फिर चाहे सर्दी हो, बारिश हो , या हो चिलचिलाती धूप का मौसम....! ऐसे में इस कविता का हमें झटपट याद हो जाना कतई आश्चर्य का विषय नही कहा जा सकता..., बचपन बीत गया, मदारी भी कहीं गुम गये, मगर यादों में ये कविता रह गयी....
डम-डम,डम-डम करता आया,
बन्दर वाला , बन्दर लाया,
बन्दर के संग एक बन्दरिया,
पहने थी वो लाल घघरिया,
ठुमुक-ठुमुक कर नाच दिखाती,
माँग-माँग कर पैसे लाती !
इस कविता के लिए प्रतिमा कहती हैं- "याद है मुझे , छुटपन में डुगडुगी बजाता , बच्चों को बुलाता वो मदारी जिसके पास हीरो-हीरोइन जैसे दो बन्दर होते थे, मतलब वो ऐसा कहता था. चश्मा लगाये बन्दर और घाघरा पहने बन्दरिया .. आहा कित्ती प्यारी... मदारी की डुगडुगी पर हम बच्चों का घर से निकलना वैसे ही तय होता था , जैसे पैड्पाइपर के पाइप बजाने पर चूहों का निकलना, फिर चाहे सर्दी हो, बारिश हो , या हो चिलचिलाती धूप का मौसम....! ऐसे में इस कविता का हमें झटपट याद हो जाना कतई आश्चर्य का विषय नही कहा जा सकता..., बचपन बीत गया, मदारी भी कहीं गुम गये, मगर यादों में ये कविता रह गयी....
डम-डम,डम-डम करता आया,
बन्दर वाला , बन्दर लाया,
बन्दर के संग एक बन्दरिया,
पहने थी वो लाल घघरिया,
ठुमुक-ठुमुक कर नाच दिखाती,
माँग-माँग कर पैसे लाती !
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