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गुरुवार, 12 जून 2014

हमने खूब पढ़ाई की।

इस ब्लॉग का उद्देश्य बालोपयोगी कविताएं देना है, ताकि स्कूल जानेवाले हर उम्र के बच्चे अपनी ज़रूरत के मुताबिक इसमें से कविताएं ले सकें। लोगों की सहभागिता बढ़ाने के लिए हमने उनकी यादों से कविताएं मांगी। बच्चों से स्कूलों में पढ़ाई जानेवाली कविताएं। आपसे अनुरोध कि अपनी यादों के झरोखों को देखें और जो भी याद हों, वे कविताएं मेरे फेसबुक मेसेज बॉक्स में या gonujha.jha@gmail.com पर भेजें। आपकी दी कविताएं आपके नाम के साथ पोस्ट की जाएंगी।
इस बार की सीरीज में प्रस्तुत की जाएंगी, मृदुला प्रधान की कविताएं! पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा था - "सूरज का ..."। मृदुला प्रधान हिन्दी की कवि हैं। उनकी कविताओं में आम जीवन बोलता है। ये कविताएं छोटी कक्षाओं के बच्चों से लेकर 10-12वी कक्षा के बच्चे भी पढ़ सकते हैं। आज पढ़िये इनकी कविता हमने खूब पढ़ाई की।

हमने खूब पढ़ाई की
तो नंबर अच्छे आए,
दादा-दादी पास बिठाकर
मुझे खूब दुलराए
दादा झट से बरफी लाए
दादी की चढ़ी कढ़ाई,
पूरी-हलवा की खुशबू
पूरे घर में आई।
दादी ने पकवानों की
खूब अंबार लगाई
मम्मी ने खाने की टेबल
खूब ही खूब सजाई।
पापा जब ऑफिस से आए
पूछा दरवाजे से
नीचे तक फैली है खुशबू
क्या अपने ही घर से?
बात हुई क्या, मुझे बताओ
तब मम्मी ने बतलाया
अच्छे-अच्छे नंबर
अपनी गुड़िया है लाई,
पापा ने फिर ठोकी पीठ
सीने से मुझे लगाया
गालों को चूमा मम्मी ने
क्या कहूँ, मजा जो आया! ###





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