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मंगलवार, 24 जून 2014

महानगर की धूप

इस ब्लॉग का उद्देश्य बालोपयोगी कविताएं देना है, ताकि स्कूल जानेवाले हर उम्र के बच्चे अपनी ज़रूरत के मुताबिक इसमें से कविताएं ले सकें। लोगों की सहभागिता बढ़ाने के लिए हमने उनकी यादों से कविताएं मांगी। बच्चों से स्कूलों में पढ़ाई जानेवाली कविताएं। आपसे अनुरोध कि अपनी यादों के झरोखों को देखें और जो भी याद हों, वे कविताएं मेरे फेसबुक मेसेज बॉक्स में या gonujha.jha@gmail.com पर भेजें। आपकी दी कविताएं आपके नाम के साथ पोस्ट की जाएंगी।
इस बार की सीरीज में प्रस्तुत की जा रही हैं- मृदुला प्रधान की कविताएं! मृदुला प्रधान हिन्दी की कवि हैं। उनकी कविताओं में आम जीवन बोलता है। ये कविताएं छोटी कक्षाओं के बच्चों से लेकर 10-12वी कक्षा के बच्चे भी पढ़ सकते हैं। आज की कविता, बड़ी क्लास के बच्चों के लिए-  महानगर की धूप

यह महानगर की धूप है,
नपी, तुली, छनी हुई,
अट्टालिकाओं के पीछे से
कट-छंटकर
आती है,
आरी-तिरछी होती हुई
निकल जाती है,
गांवों-कस्बों की तरह
भर-भर आँगन
नहीं आती,
टार पर फैले
पचासों कपड़े नहीं सुखाती,
कभी मुँडेरों
तो कभी दीवारों पर ही
सिमट जाती है,
यह महानगर की धूप है
बिजली और पानी की तरह
कभी आती है
कभी नहीं आती है। ####

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