कल आपने राधा का ज़ोर और कृष्ण का मनुहार पढा। आज राधा का मनुहार। प्रेम में कोई बड़ा छोटा नहीं होता। प्रेम के ये छोटे-छोटे तत्व जीवन में बड़ा रस घोलते हैं। प्रेम के इस मर्म को जो समझ लेता है, उसके जीवन में सदा अमृत रस बना रहता है। राधा का यह केवल मनुहार ही नहीं, बल्कि अपनी वास्तविकता से कृष्ण कोसाक्षात्कार भी कराना है।
मोरे सर पर गागर भारी
उतार दो गिरिधारी
तुम तो पहने पियर पीताम्बर
मैं पंचरंगिनी साड़ी
उतार दो गिरिधारी
तुम तो बेटे नन्द बाबा के
मैं वृषभानु दुलारी
उतार दो गिरिधारी
तुम तो खाओ माखन मिश्री
मैं दधि बेचनवाली
उतार दो गिरिधारी
मोरे सर पर गागर भारी
उतार दो गिरिधारी।
1 टिप्पणी:
bhut sundar.
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