यह कविता स्वर्णकांता की ओर से. स्वर्णकांता युवा पत्रकार हैं. दिल्ली में रहती हैं. गिनती पर कविताएं बहुत सृजनातमक है,. कविताई भी और गिनती की याद भी. आप भी अपनी यादों और अपने आसपास पर नज़र डालें और बच्चों के उपयोग की कविताएं हमें भेज डालें gonujha.jha@gmail.com पर.
एक दो- कभी ना रो
तीन-चार- रखना प्यार
पांच-छह- मिलकर रह
सात-आठ- पढ लो पाठ
नौ-दस- जोर से हंस
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एक दो- कभी ना रो
तीन-चार- रखना प्यार
पांच-छह- मिलकर रह
सात-आठ- पढ लो पाठ
नौ-दस- जोर से हंस
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2 टिप्पणियां:
बाल-मन के लिए
लिखी गयी नन्ही कविता में
सन्देश भी तो है ...
आपके लिए और स्वरण कांता जी के लिए
अभिवादन .
धन्यवाद दानिश! आप भी अपनी यादों की पोटली में से एकाध कविता भेजिए ना हमें ताकि हम उसे इस ब्लॉग पर डाल सकें.
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