This blog is "Poetry meant for Children" so that children of all age group can pick up their favorite from here. You may also participate. Send poems, written or heard by you on gonujha.jha@gmail.com. poems will be published with your name.
गुरुवार, 29 मई 2008
ABC
एबीसी
कहं गई थी?
कुत्ते कि झ्पोअदी में सो गई थी
कुत्ते ने काट लिया
रो रही थी
पापा ने पैसे दिए
हंस ताही थी
मामी ने तौफी दी,
खा रही थी,
bhaiyaa ने जीभ दिखाई
चिढ रही थी
दीदी ने दुलार किया
मस्त हो रही थी।
सैनिक
हम सैनिक हैं, हम सैनिक हैं
लाराने को रण में जायेंगे
कुछ अपने हाथ दिखाएँगे
हम शूरवीर कहलायेंगे
घमासान हम समर करेंगे
नम जगत में अमर करेंगे
हम -सा ना बहादुर कोई है
जो कहते कर दिखालायेंगे
-------------------------- (अपूर्ण pankti)
रिपुओं के छक्के छुडायेंगे
- स्वप्निल
मंगलवार, 27 मई 2008
इंडिया गेट पे दो सिपाही
मोटू सेठ,
सड़क पर लेट
गाडी आई,
फट गया पेट
गाडी का नंबर २८
गाडी पहुँची
इंडिया गेट
इंडिया गेट पे सिपाही
मोटू जी की खूब पिटाई
शुक्रवार, 16 मई 2008
मेरा डिसीजन जानो मम्मी
मम्मी पीछे पडो ना मेरे, मुझको पढ़ना आता है,
पास करेंगे, मार्क्स मिलेंगे, मन फ़िर क्यों घबड़ता है?
हिस्ट्री, हिन्दी, साइंस, इंग्लिश, भूला नहीं मुझे कुछ भी,
फ़िर भी मेरी चिंता में, रात-रात तुम सोती नहीं,
टेंशन, लफड़े क्यों लेती हो, मैं हूँ पूरा जिम्मेदार,
पीठ पे मेरी ना तो बैठो, ना हो मेरे सर पे सवार,
अभी तो हू चौथी में, अभी से क्यों भेजो मुझको ट्यूशन?
छठवीं तक तो तुम ही पधाओगी , है ये मेरा डिसीजन।
पापा, अच्छे मार्क्स हैं आए, लाओ झट से मेरा गिफ्ट,
वादेवाला ही लाना, वादे से होना ना शिफ्ट
अभी है छुट्टी, अभी ना पढ़ना, फुल एन्जॉय करना है,
लो ना मामी तुम भी छुट्टी, गर्ल्स-ब्याय का कहना है।
मंगलवार, 13 मई 2008
फैज़ की नज्म- बेटी मुनीज़ा के लिए
यह नज्म नज्म हमारे एक मित्र हर्ष ने भेजी है अपनी टिप्पणियों के साथ। हम इसे यहं दे रहे हैं।
A great poet Faiz Ahmad 'Faiz' wrote this nazm on his younger daughter Muneeza's 8th birthday। Place -now Pakistan। Time & Year - much before we started to treat our daughters as humans।
इक मुनीज़ा हमारी बेटी है, जो बहुत ही प्यारी बेटी है
फूल की तरह उसकी रंगत है, चाँद की तरह उसकी सूरत है,
जब वो ख़ुश हो कर मुस्काती है, चांदनी जग में फैल जाती है,
उम्र देखो तो आठ साल की है, अक्ल देखो तो साठ साल की है,
वो गाना भी अच्छा गाती है, गरचे तुमको नहीं सुनाती है,
बात करती है इस क़दर मीठी, जैसे डाली पे कूक बुलबुल की है,
जब कोई उसको सताता हैतब ज़रा ग़ुस्सा आ जाता है,
पर वो जल्दी से मन जाती हैकब किसी को भला सताती है,
शिगुफ्ता बहुत मिज़ाज उसकाउम्दा है हर काम काज उसकाहै
मुनीज़ा की आज सालगिरहहर सू शोर है मुबारक का
चाँद तारे दुआएं देते हैंफूल उसकी बलायें लेते हैं,
गा रही बाग़ में ये बुलबुल“तुम सलामत रहो मुनीज़ा गुल”
फिर हो ये शोर मुबारक काआये सौ बार तेरी सालगिरह
सौ क्या सौ हज़ार बार आयेयूँ कहो के बेशुमार आए
लाये अपने साथ ख़ुशीऔर हम सब कहा करें यूँ ही,
ये मुनीज़ा हमारी बेटी हैये बहुत ही प्यारी बेटी है।
- फैज़ अहमद फैज़
सोमवार, 12 मई 2008
दिन में रात
सूरज काकू संग में अपने, पित्ज़ा लेके आए हैं।
आसमान का रंग हरा है, धरती लगती नीली है,
कव्वे कितने सुफेद लग रहे, धरती कितनी नीली है।
मैं तो चित्र बनाउऊँ ऐसे, मुझको दिखाते ऐसे सारे,
टीचर को तुम बोलो मम्मी, मार्क्स न मेरे काटे प्यारे
चन्दा मामा दिन में निकले, सूरज काकू रात में,
बिजली कितनी बचेगी मम्मी, है ना दम इस बात में।
राज़ की बात बताऊँ मम्मी, बचेंगे हम स्कूल से,
होंगे दिन में चन्दा तारे, दिन जाता स्कूल में
ज़ल्दी से उठाना न पडेगा, ब्रश-दूध पे डाँट न पड़ेगी,
टीचर भी तो सोये रहेंगे, कोई भी चिंता न रहेगी।
कित्ती अच्छी पेंटिंग मेरी, अम्मी तुम्हारे लिए है ये,
पापा को भी समझाओ, अभी न दिन है, रात है ये।
रविवार, 11 मई 2008
बचपन
हम झूला, झूले के ऊपर, झूला मेरे नीचे,
अपनी थी कागज़ की नैया, थे तेल्चात्ते, चींटे,
तितली से भी छनती गाधी, कव्वे शहद से मीठे
दादी के हाथों की मालिश, उसके प्यार की गरमी
चुटिया दीदी से ही बनेगी, ऎसी थी हठधर्मी
लिख किताब में 'चोर', सेंधामार', भइया को दिखाया नीचे
अब चुराओ फ़िर पैसे मेरे, जाओगे थाने सीधे
गोबर, मिट्टी, घास- पुआल, होली, होती निराली,
पक उपले पर सोंधी लिट्टी, आलू, चटनी सआरी,
पेड़ पे चढ़ अमरूद तोड़ना, कच्चे आम का कुच्चा
रस्सी, कबड्डी, चोर-सिपाही, आइस-पैस में गच्चा
बचपन में जीवन की बगिया, चन्दा, झूला-डोरी
बचपन मस्ती और कलंदारी, ताबदक चलती घोडी
सुबह शाम तरकारी आती, सुबह-शाम के नखरे,
धरो- सहेजो बचपन आपना जिन्दगी ना छूटे- बिखरे
शनिवार, 10 मई 2008
अबकी ऎसी छुट्टी हो
छुट्टी कि अब बात चली
छुट्टी ही दिन रात चली
धरो किताबें, कलम, सवाल
सोने हो एक ही हाल
चादर कहीं और हम हों कहीं
पापा और तुम जाओ कहीं
पेट में चूहे दौदें जब
मम्मी देना कुछ भी टैब
लेकिन कुछ भी खाऊँ कैसे
स्वाद मेरे अक्षर के जैसे
खेल -खेल और खेल खेल
चाहे दुनिया गोलामगोल
मुझसे भारी कोई नहीं
मुझसे न्यारी कोई नहीं
घडी की अब ना बात करो
छुट्टी मे संग साथ रहो
तुम भी आओ, मेरे संग
खेलेंगे हम हर इक रंग
मम्मी के संग जाना बाज़ार
पापaa के संग गुडिया बीमार
bhaiya लाए चाट उधार
दीदी की चुन्नी चताखार
ऎसी छुट्टी होए अब
इसमें ही खोएं रहें सब।