चिडिया चली चांद के देश
नन्हें नन्हें पंख संवारे
साथ ना कोई संगी साथी
चली अकेले बिना सहारे
ऊपर को वो उडती जाए
बडे मज़े से गाना गाए,
अपने नन्हे पंख हिलाती
ऊंचा उडना उसको भाए
This blog is "Poetry meant for Children" so that children of all age group can pick up their favorite from here. You may also participate. Send poems, written or heard by you on gonujha.jha@gmail.com. poems will be published with your name.
चिडिया चली चांद के देश
नन्हें नन्हें पंख संवारे
साथ ना कोई संगी साथी
चली अकेले बिना सहारे
ऊपर को वो उडती जाए
बडे मज़े से गाना गाए,
अपने नन्हे पंख हिलाती
ऊंचा उडना उसको भाए
इस बार एक कविता पाकिस्तान से। इसे महनाज़ रहमान ने भेजा है। महनाज़ एक पत्रकार हैं, लेखक हैं, बहुत ही संवेदनशील इनसान हैं। कई एन जी ओ के लिए काम करती हैं। २३ साल से हमारी उनकी दोस्ती है। हमारी गुजारिश पर उन्होंने ये कविता भेजी है। आप सबसे भी अनुरोध है की अपनी यादों के पिटारे से एकाध कविता हमें भेजें। gonujha.jha@gmail.com पर।
पिया ने मेकअप कर डाला है,
बन ठन कर बाहेर आये हैं
सारी महफिल पर छाई है
अब किस बात की देर है मामा
चलें, चलकर केक तो काटें,
उछलें, कूदें, नाचे, गाएं
आहा, आहा, आहा,
आज पिया की सालगिरह है
सालगिरह में बडा मज़ा है.
मेरे अनुरोध पर संपादक (सृजनगाथा) जयप्रकाश मानस ने अपने बचपन के पिटारे से यह कविता भेजी हैं। उनके ही शब्दों में - "भूला नहीं अब तक । शायद तीसरी या चौंथी में पढ़ा था । कदंब का पेड़ तो था नहीं हमारे घर के आसपास । पर गीत का प्रभाव इतना था कि जब भी दोस्तों के साथ खेलते-फांदते नजदीक के जंगल में चले जाते और किसी फलदार पेड़ पर चढ़कर दहीकादो जैसे खेल खेलते तो मन के भीतर सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखा यही गीत गूँजने लगता । शायद इसी गीत के ताल, छंद, लय और भाव का इतना प्रभाव मन पर पड़ा कि मेरे लेखन की शुरुआत भी बाल गीतों से हुई । खैर... आप भी गुनगुनाइये यह गीत. " आप भी अपनी कवितायें भेजें - gonujha.jha@gmail.com पर।
यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे।मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे।।
ले देतीं यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली।किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली।।
तुम्हें नहीं कुछ कहता पर मैं चुपके-चुपके आता।उस नीची डाली से अम्मा ऊँचे पर चढ़ जाता।।
वहीं बैठ फिर बड़े मजे से मैं बांसुरी बजाता।अम्मा-अम्मा कह वंशी के स्वर में तुम्हे बुलाता।।
बहुत बुलाने पर भी माँ जब नहीं उतर कर आता।माँ, तब माँ का हृदय तुम्हारा बहुत विकल हो जाता।।
तुम आँचल फैला कर अम्मां वहीं पेड़ के नीचे।ईश्वर से कुछ विनती करतीं बैठी आँखें मीचे।।
तुम्हें ध्यान में लगी देख मैं धीरे-धीरे आता।और तुम्हारे फैले आँचल के नीचे छिप जाता।।
तुम घबरा कर आँख खोलतीं, पर माँ खुश हो जाती।जब अपने मुन्ना राजा को गोदी में ही पातीं।।
इसी तरह कुछ खेला करते हम-तुम धीरे-धीरे।यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे।।
- जयप्रकाश मानस
कुछ बच्चियों ने मिलकर बनाया एक ब्लाग- http://paripoems।blogspot.com/ यह कविता वहीं से ली गई है। आप भी अपनी पिटारी खोलें और कवितायें भेजें gonujha.jha@gmail.com पर ।
बात है यह बहुत पुरानी
खा रही थी अंगूर एक रानी
बीज उसके गले में फंसता
यह देख कर भाई उसका बहुत हंसता
जितने भी अंगूर वह पाती
बीज निकाल कर ही खाती
बीज वह बगीचे में बोती
अंगूर होंगे खूब, वह सोचती
बीते कई महीने-साल
अंगूर ना उगा
पर उग गया अनार
कुछ बच्चियों ने मिल कर एक ब्लॉग बनाया
पेड़ों के कट जाने के बाद
बचेगी नहीं ये zindagii
पूछते हो क्यों
क्योंकि पेड़ है जीवन डोर
पेड़ कट जाने के बाद
हो जाएंगे हम बर्बाद
पूछते हो क्यों?
क्योंकि बचेगा ना कोई आहार
पेड़ कट जाने के बाद
जल जाएगी ये ज़मीन
पूछते हो क्यों?
क्योंकि छाया न होगी फिर कभी
पेड़ कट जाने के बाद
सूखा पड़ जाएगा हर कहीं
पूछते हो क्यों?
क्योंकि बारिश को बुलानेवाला न
होगा कोई ।
मेरे अनुरोध पर सोनाली सिंह ने अपने बचपन के पिटारे से कुछ कवितायें भेजी हैं। सोनाली सिंह हिन्दी की युवा कथा लेखक हैं। इनकी अभी-अभी एक कहानी "हंस" के मई, २००९ अंक में छपी है- "क्यूतीपाई । आप भी अपने यादों के पिटारे से कवितायें भेजें- gonujha.jha@gmail.com पर।
पुरानी यादे ताज़ा करो।
1।) मछली जल की रानी है,
जीवन उसका पानी है।
हाथ लगाओ डर
जायेगीबाहर निकालो मर जायेगी।
2।) पोशम्पा भाई पोशम्पा,
सौ रुपये की घडी चुराई।
अब तो जेल मे जाना पडेगा,
जेल की रोटी खानी पडेगी,
जेल का पानी पीना पडेगा।
थै थैयाप्पा थुशमदारी बाबा खुश।
3।) झूठ बोलना पाप है,
नदी किनारे सांप है।
काली माई आयेगी,
तुमको उठा ले जायेगी।
4।) आज सोमवार है,
चूहे को बुखार है।
चूहा गया डाक्टर के पास,
डाक्टर ने लगायी सुई,
चूहा बोला उईईईईई।
5।) आलू-कचालू बेटा कहा गये थे,
बन्दर की झोपडी मे सो रहे थे।
बन्दर ने लात मारी रो रहे थे,
मम्मी ने पैसे दिये हंस रहे थे।
6।) तितली उडी, बस मे चढी।
सीट ना मिली,तो रोने लगी।
ड्राईवर बोला आजा मेरे पास,
तितली बोली " हट बदमाश "।