This blog is "Poetry meant for Children" so that children of all age group can pick up their favorite from here. You may also participate. Send poems, written or heard by you on gonujha.jha@gmail.com. poems will be published with your name.
सोमवार, 1 नवंबर 2010
सारी दुनिया गोल गोल
नीचे की धरती गोल गोल
ऊपर का चंदा गोल गोल
मम्मी की रोटी गोल गोल
पापा का पैसा गोल गोल
हम भी गोल, तुम भी गोल
सारी दुनिया गोल गोल
- दीदी की बिटिया अप्पू के मुंह से
एक दो,
कभी ना रो.
तीन चार,
रखना प्यार.
पांच छः,
मिलकर रह.
सात आठ,
पढ़ लो पाठ.
नौ दस,
जोर से हँस.
- दीदी की बिटिया अदिति के मुंह से
.
बुधवार, 30 जून 2010
जिह्वा नृत्य (tongue twisters)
1 पीठ ऊंची ऊंट की ऊंचाई से नहीं होती, होती ही है, होती ही है, पीठ ऊंची ऊंट की.
2 चंदा चमके चम चम, चीखे चौकन्ना चोर, चीनी चाटे चींटी, चटोरी चीनी चोर.
3 खडग सिंह के खडकने से खडकती हैं खिडकियां, खिडकियों के खडकने से खडकता है खडग सिंह.
4 पके पेड पर पका पपीता, पका पेड या पका पपीता, पके पेड को पिंकू पकडे, पिंकू पकडे पका पपीता
5 चंदू के चाचा ने चंदू की चाची को चांदी के चमचे से चौदहवीं की चांदनी रात में चौथी बार चार चम्मच चटनी चटाई.
6 सुनिए श्रीमती सुषमा शर्मा, इस परिस्थिति में मस्तिष्क के समस्त स्नायु शिथिल व सुप्त हो चले हैं.
7 आप प्रथमत: अपने प्रिय पुत्र को प्रेम की पप्पी प्रेषित कर प्यार से पुचकारिये.
8 कलाम कलम ले कमल को कमाल कराने गया.
9 लडकी लकडी, ककडी कडाह में काट कराहने लगी.
10 राधा की नीबू में बूनी की धारा, धारा में राधा की बूनी बनी धारा
गुरुवार, 3 जून 2010
माँग-माँग कर पैसे लाती !
इस कविता के लिए प्रतिमा कहती हैं- "याद है मुझे , छुटपन में डुगडुगी बजाता , बच्चों को बुलाता वो मदारी जिसके पास हीरो-हीरोइन जैसे दो बन्दर होते थे, मतलब वो ऐसा कहता था. चश्मा लगाये बन्दर और घाघरा पहने बन्दरिया .. आहा कित्ती प्यारी... मदारी की डुगडुगी पर हम बच्चों का घर से निकलना वैसे ही तय होता था , जैसे पैड्पाइपर के पाइप बजाने पर चूहों का निकलना, फिर चाहे सर्दी हो, बारिश हो , या हो चिलचिलाती धूप का मौसम....! ऐसे में इस कविता का हमें झटपट याद हो जाना कतई आश्चर्य का विषय नही कहा जा सकता..., बचपन बीत गया, मदारी भी कहीं गुम गये, मगर यादों में ये कविता रह गयी....
डम-डम,डम-डम करता आया,
बन्दर वाला , बन्दर लाया,
बन्दर के संग एक बन्दरिया,
पहने थी वो लाल घघरिया,
ठुमुक-ठुमुक कर नाच दिखाती,
माँग-माँग कर पैसे लाती !
शुक्रवार, 21 मई 2010
गिनती गिन लो प्यारे भाई!
इस कविता के लिए प्रतिमा कहती हैं- "इस कविता से मेरी नानी की यादें जुड़ी हैं . इस कविता को हमने कहीं पढ़ा नहीं बल्कि उन्हीं के मुँह से सुना था और आज भी याद है. एक से दस तक की गिनती किसी नन्हें बच्चे को सिखाने का कितना प्यारा और आसान तरीका .... है न !"
एक राजा की बेटी थी ,
दो दिन से बीमार पड़ी,
तीन डाक्टर सुन कर आए ,
चार दवा की पुड़िया लाए ,
पांच बार घिस गरम कराई ,
छः-छः घंटे बाद पिलाई ,
सात दिनों में आँखें खोलीं ,
आठ दिनों में हँस कर बोली ,
नौ दिनों में ताकत आई ,
दस वें दिन उठ दौड़ लगाई !
बुधवार, 19 मई 2010
अटकन - बटकन, दहिया चटकन
इस कविता के लिए प्रतिमा कहती हैं- "केवल तुक मिलाती इस कविता का अर्थ आज भी नहीं पता, लेकिन इसे बोलकर पढने में बचपन में भी मज़ा आता था, अब भी आता है." पढिये कविता और आप भी जरा तुकबंदे का स्वाद लीजिए:
अटकन - बटकन,
दहिया चटकन,
नानी लाई ,
खीर - मलाई ,
मुसवा मोटा ,
रुपिया खोटा,
माला टूटी ,
किस्मत फूटी ,
गोल बताशे ,
खेल -तमाशे,
खा लो चमचम ,
हरहर बमबम . .
मंगलवार, 18 मई 2010
अम्मा ज़रा देख तो ऊपर,
छुटपन की गठरी में तो जाने कैसी -कैसी अल्लम -गल्लम चीजें भरी हैं . गाँठ ढीली पड़ते ही चारों ओर बिखर जातीं हैं . लगता है कि बचपन तो बस कल ही विदा हुआ है , वो भी फिर - फिर लौटने का वादा करके .... ! बचपन में पाठ्य पुस्तक में पड़ी कविताएँ, याद नहीं पड़ता, कि कभी सायास रटी गयीं थी , लेकिन बस यूहीं जाने कब मन की सतह पर ऐसी छपीं कि फिर कभी भूलीं ही नहीं . ये ऐसी ही एक कविता है जो अब भी जबानी याद है . (शायद अपने भी कहीं पढ़ी हो , मेरे कोर्स में थी.)नहीं पता कि ये रचना किस कवि की है मगर उन्हें प्रणाम ज़रूर करना चाहूगीं कि उन्होंने मेरे बचपन को एक ऐसी कविता दी जो आज भी बारिश होते ही मुझे अपने बचपन में उड़ा ले जाती है.
अम्मा ज़रा देख तो ऊपर,
चले आ रहे हैं बादल,
,दीख रहा है जल ही जल ,
हवा चल रही क्या पुरवाई ,
झूम रही डाली -डाली ,
ऊपर काली घटा घिरी है ,
नीचे फैली हरियाली ,
भीग रहे हैं खेत-बाग-वन,
भीग रहा है घर-आँगन ,
बाहर निकालूँ ,मैं भी भीगूँ ,
चाह रहा है मेरा मन !
शुक्रवार, 7 मई 2010
गुडिया मेरी रानी है!
गुडिया मेरी रानी है,
लगती बडी सयानी है,
गोरे-गोरे गाल हैं,
लम्बे-ललम्बे-लम्बे बाल हैं,
आंखें नीली-नीली हैं,
साडी पीली-पीली है,
बडा गले में हार है,
मुझको इससे प्यार है,
अपने पास बिठाती हूं,
बर्फी उसे खिलाती हूं,
मीठी उसकी बानी है,
गुडिया मेरी रानी है!
रविवार, 14 फ़रवरी 2010
टेसूरा, टेसूरा
टेसूरा, टेसूरा, घंटा बजैयो,
नौ नगरी, दस गांव बसइयो,
बस गए तीतर, बस गए मोर,
बुरी डुकरिया लै गए चोर.
चोरन के घर खेती भई,
खाए डुकरिया मोटी भई,
मोटी है के, पीहर गई,
पीहर में मिले भाई भौजाई,
सबने मिलि कर दई बधाई!
----
सूरज जल्दी आना जी,
एक कटोरी भर कर गोरी
धूप हमें भी लाना जी,
सूरज जल्दी आना जी,
जम कर बैठा यहां कुहासा,
आर पार न दिखता है,
ऐसे भी क्या कभी किसी के,
घर में कोई टिकता है.
सच सच ज़रा बताना जी,
सूरज ज़ल्दी आना जी.
कल की बारिश में जो भीगे,
कपडे अबतक गीले हैं,
क्या दीवारें, क्या दरवाज़े,
सबके सभी सीले हैं.
सच सच ज़रा बताना जी,