This blog is "Poetry meant for Children" so that children of all age group can pick up their favorite from here. You may also participate. Send poems, written or heard by you on gonujha.jha@gmail.com. poems will be published with your name.
सोमवार, 24 नवंबर 2008
बहुत दिनों तक चूल्हा रोया
बहुत दिनों तक चूल्हा रोया चक्की रही उदास
बहुत दिनों तक कानी कुतिया सोई उसके पास
बहुत दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त
बहुत दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त
दाने आए घर के अन्दर बहुत दिनों के बाद
धुंआ उठा आँगन के ऊपर बहुत दिनों के बाद
कव्वों ने खुजलाई पांखें बहुत दिनों के बाद
चमक उठीं घर भर की आँखें बहुत दिनों के बाद
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शुक्रवार, 21 नवंबर 2008
सड़क सुहानी
लम्बी-चौडी सड़क सुहानी,
भेद न रखती ग्राम-नगर में
साथिन बनाती रोज़ सफर में,
सच्चे मन से सेवा करती,
लम्बी-चौडी सड़क सुहानी।
कहीं-कहीं बल खाती जाती,
कहीं-कहीं सीधा पहुंचाती,
कभी न करती है नादानी,
लम्बी-चौडी सड़क सुहानी।
साभार, रमाकांत दीक्षित
बुधवार, 19 नवंबर 2008
गुडिया रोई मुन्नी रोई
यह कविता रेखा दी ने अपनी यादों की पिटारी से निकाल कर हमें दी है। आप भी अपनी पिटारी खोलें और कवितायें bhejen gonujha.jha@gmail.com पर
नन्हीं मुन्नी ओढे चुन्नी
गुडिया खूब सजाई है,
किस गुड्डे के साथ हुई
इसकी आज सगाई है.
रंग बिरंगी ओढे चुनरिया
माथे पर चमके है बिंदिया
खन-खन खनके हाथ के कंगना
अब छोड़ चली मुन्नी का अंगना .
गुडिया रोई मुन्नी रोई
संग संग सखी सहेली रोईं
कल ही चल देगी यह तो
सोच सोच कर अखियाँ धोईं ।
-साभार, रेखा श्रीवास्तव
सोमवार, 17 नवंबर 2008
एक अजूबा हमने देखा
svapnil ne bahut din baad ek kavitaa bhejii hai-
एक अजूबा हमने देखा
कुएं में लग गई आग
पानी पानी जर गओ,
मछरी खेलें फाग
नाव में नदिया डूबी जाए
एक अजूबा हमने देखा
कुँए में लग गई आग
पानी पानी जर गओ,
मछरी खेलें फाग
नांव में नदिया डूबी जाये
-स्वप्निल
रविवार, 16 नवंबर 2008
मूंछें ताने पहुंचे थाने
चूहे जी इक रपट लिखाने
बिल्ली मौसी हवलदार थीं,
एक-दो नहीं, तीन-चार थीं,
पहली ने चूहे को डांटा,'
दूजी ने मारा इक चांटा,
बढीं तीसरी आँखें मींचे,
चौथी दौडीं मुट्ठी भींचे,
काँप उठे चूहे जी थार-थार,
सरपट भागे अपने घर पर,
फिरते हैं अबतक घबराए
लौट के बुद्धू घर को आए।
साभार- प्रकाश पुरोहित
सोमवार, 10 नवंबर 2008
जिनके बिगड़ल बा चलनियां तोड़ दे टंगडी
कैसे संभले जिंदगानी, पूछे नगरी,
पूछे नगरी, हो रामा पूछे नगरी,
जिनके बिगड़ल बा चलनियां तोड़ दे टंगडी
हो मारो झाडू आ बधानियाँ, तोड़ दे टंगडी।
घुटने, कमर लेके बैठे क्यों हो मेरे भाई
चलना सीखो मील-मील भर, मत खाओ मिठाई
वरना, जिंदगी बन जायेगी, तुम्हारी गठडी
हो तुम्हारी गठडी हो तुम्हारी गठडी
जिनके बिगड़ल बा चलनियां तोड़ दे टंगडी ।
जल ही जीवन, जीवन -धारा, धारा चलती रहती
समय भी चलता, दिन भी चलते, रात भी चलती रहती
तुम भी चल दो उठ के वरना कम जायेगी शक्ति
हो कम जायेगी शक्ति, हो कम जायेगी शक्ति
जिनके बिगड़ल बा चलनियां तोड़ दे टंगडी ।
शुद्ध साफ़ औक्सीजन भर लो साँस के इंजन में,
कर दो भस्म, घूम के, कोलेस्ट्रौल सीने में
फूलों जैसी हो जायेगी, जीवन की पगडी
हो जीवन की पगडी हो जीवन की पगडी
ऐसे संभले जिंदगानी सुनो री नगरी।
बुधवार, 5 नवंबर 2008
चंदा मामा दूर के,
चंदा मामा दूर के,
पुए पकाए गुड के ,
आप खाए थाली में,
मुन्ने को दें प्याली में,
प्याली गयी टूट,
मुन्ना गया रूठ,
हम नयी प्याली लायेंगे,
मुन्ने को मनाएंगे,
बजाकर बजाकर तालियाँ ,
मुन्ने को खिलाएंगे.